मकर संक्रांति एक सांस्कृतिक एकरूपता की विरासत का पर्व

भारत में मकर संक्रांति पर्व देश को सांस्कृतिक रूप से एकसूत्र में पिरोने का काम

मकर संक्रांति में सूर्य का प्रवेश मकर राशि में होता है जिसके कारण एक पुण्य को अर्जन करने का एक शुभ समय प्राप्त होता है। कुंभ के समय मकर राशि और गुरू की भूमिका विशेषरूप से देखी जा सकती है। भारत में मकर संक्रान्ति एक बेहद लोकप्रिय त्योहार है। यह धार्मिक और मौसमी त्योहार है; जोकि भारत के अधिकांश राज्यों में मनाया जाता है। मकर संक्रांति मुख्य रूप से सूर्य के दक्षिण से उत्तर की ओर संक्रमण और मकर राशि में प्रवेश करने के बारे में है।

यह आमतौर पर हर साल यह त्यौहार एक ही तारीख को पड़ता है; और वो है 14 जनवरी। कभी-कभी तारीख बदलकर 15 जनवरी भी कर दी जाती है। यह मुख्य रूप से एक फसल उत्सव है और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार से मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत को एकसूत्र में पिरोने का काम करता है और विविधताओं के बावजूद अधिकांश भारत में अपनी-अपनी परम्पराओं के हिसाब से मनाया जाता हैं।

मकर संक्रान्ति का सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व

मकर संक्रांति या उत्तरायण की अवधि की उत्पत्ति भारतीय पौराणिक कथाओं से मिलती है। एक कहानी भगवान विष्णु के बारे में है। ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों को मारकर उन्हें मंदरा पर्वत के नीचे दबा दिया था । यह कहानी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

इनमें से एक कहानी भगवान सूर्य और शनिदेव की है। शनि मकर राशि का स्वामी है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य और शनि के बीच संबंध बहुत अच्छे नहीं थे; फिर भी, इस दिन भगवान सूर्य मतभेदों को दूर करते हुए शनि देव के दर्शन करते हैं। यह मकर संक्रांति की आशा की किरण का प्रतीक है कि कैसे मधुरता और अच्छे संबंध निर्विवाद हैं।

महाभारत के आधार पर, यह कहा जाता है कि भीष्म पितामह को  इच्छा मृत्यु ्का वरदान था, और उन्होंने उत्तरायण की शुरुआत में मरने का फैसला किया, यानी जब सूर्य उत्तर की ओर अपनी दिशा बदलता है।  ऐसा माना जाता है कि यदि इस अवधि के दौरान किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उसे मोक्ष या मोक्ष प्राप्त होता है और वह वैकुंठ चला जाता है। 

संक्रांति महोत्सव के विभिन्न अनुष्ठानों के महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता है। चाहे वह पवित्र प्रथाएँ हों, भोजन तैयारियाँ हों या यहाँ तक कि पतंग उड़ाने की अवधारणा भी हो।

भारत के राज्यों में इस प्रकार मनाया जाता है उत्सव-

हिमाचल में मकर संक्रांति को माघ साजी के नाम से भी जाना जाता है । हिमाचल मंे मकर संक्रान्ति का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। हिमाचल में इस दिन जो पर्व को मनाने की परम्परा रही है उसमें कृसरान्न अर्थात् खिचड़ी का दान किया जाना प्रमुख रहा है। पक्षियों केे लिए पेड़ों पर पानी के लिए मिट्टी के छोटे-छोटे कलश रखे जाते हैं। हिमाचल में देव-परम्परा को मानने वाला समाज है ऐसे मे प्रत्येक संक्रान्ति को स्थानीय देव मन्दिर में एकत्र होकर रोट लगाने की परम्परा का भी लोग इस दिन पालन करते हैं। प्रदेश में यह महीना धर्मी महीना या पवित्र मास के रूप में जाना जाता है। हिमाचल एक सर्द स्थान है इस कारण यहां पर ऐसी वस्तुओं का उपयोग अधिक होता है जिससे ठंड के प्रकोप को भी कम किया जा सके। यहां पर बनने वाली खिचड़ी में कोलथ जोकि एक स्थानीय दाल है उसका उपयोग किया जाता है। कोलथ गर्म प्रकृति की दाल है जिसमें कई रोगों को दूर करने के गुण पाये जाते हैं। कोलथ की दाल की प्रकृति गर्म है जोकि सर्दी के मौसम के बेहद अनुकुल है। इसके अतिरिक्त यहां पर खिचड़ी के साथ देसी घी का प्रयोग भी होता है। खिचड़ी के साथ गुड़ और तिल के लड्डुओं का खूब प्रयोग किया जाता है। साथ ही सूखे मेवे और अखरोट आदि का खूब प्रचलन है। जश्न मनाने के लिए, लोग सुबह जल्दी उठते हैं, मंदिरों और एक-दूसरे के घरों में जाते हैं, मिठाइयाँ, खिचड़ी आदि खाते हैं। तत्तापानी नामक एक गर्म पानी का झरना है जो अपनी शुभता और उपचार गुणों के लिए प्रसिद्ध है; जैसे ही लोग पानी में औपचारिक डुबकी लगाते हैं। पुजारियों को विशिष्ट मात्रा में अनाज चढ़ाकर तुला दान का अभ्यास किया जाता है। यह मेला खिलौनों, नकली आभूषणों और मिठाइयों जैसे विभिन्न उत्पादों की छोटी दुकानों और स्टालों के साथ लगता है। लोहड़ी-मकर संक्रांति के समय में गायन और हिमाचली लोक नृत्य जैसी गतिविधियाँ भी शामिल होती हैं। दिन के समय लोग अपने पड़ोसियों के घर जाते हैं और ढेर सारा घी और छाछ के साथ खिचड़ी खाते हैं।

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। बहुएँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है।लोग नए कपड़े पहनते हैं और आग के पास इकट्ठा होकर प्रार्थना करते है और अच्छी फसल के लिए आभार व्यक्त करते हैं। पंजाबी लोक संगीत और गिद्धा गाते और नृत्य करते हैं। गुड़, मूंगफली आदि से बनी रेवड़ी लोगों में बांटी जाती है। मकर संक्रांति से एक रात पहले लोहड़ी मनाई जाती है, जिसे पंजाब में माघी कहा जाता है। लोग खीर , गुड़, गन्ना आदि और खिचड़ी जैसे अन्य व्यंजनों का स्वाद लेते हैं। विभिन्न स्थानों पर विभिन्न मेले आयोजित किये जाते हैं। यह किसानों के लिए एक नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का भी प्रतीक है।

इस दिन तमिलनाडु पोंगल का त्यौहार मनाया जाता है। यह एक फसल उत्सव है।

पहला दिन (भोगी पोंगल) –  इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, पुरानी चीज़ें दान करते हैं और नई चीज़ों के लिए आभार व्यक्त करते हैं।

दिन 2 (सूर्य पोंगल)- पोंगल पकवान कटे हुए चावल, दूध और गुड़ का उपयोग करके तैयार किया जाता है। इसे लोगों के द्वारा बनाया जाता है और देवताओं को चढ़ाया जाता है। परम्परा के अनुसार रंगीन चावल के आटे का उपयोग करके घरों में कोलम बनाए जाते हैं।

तीसरा दिन (मट्टू पोंगल)– इस दिन पशुओं को सजाने और उनकी पूजा करके उनकी स्तुति की जाती है। यह एक प्रकार से भारत के मनोविज्ञान को भी प्रदर्शित करता है कि हम भारतीय देवता, मनुष्यों वनस्पतियों और पशुओं के प्रति धन्यवाद और आदर का भाव रखते हैं। इस दिन मंदिर जुलूस भी आयोजित किए जाते हैं।

दिन 4 (कानुम पोंगल)– चौथे दिन सब एकजुटता से सबको गले लगाते हैं। परिवार एक-दूसरे के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताने और ताजा फसल का जश्न मनाने के लिए एकजुट होते हैं।

मकर संक्रांति को राजस्थान में संक्रात भी कहते हैं।  राजस्थान में इस त्योहार का जश्न मुख्य रूप से ढेर सारे व्यंजनों और पतंगबाजी के साथ मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं अन्य विवाहित महिलाओं को घरेलू सामान उपहार में देने की परंपरा का पालन करती हैं।  गजक, घेवर, पकौड़ी, तिल-पाती, तिल-लड्डू, समोसे आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। जयपुर में पतंग उत्सव काफी लोकप्रिय है और सर्दियों में यह नजारा देखने वाला होता है।

उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व‘ है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। एक समय था जब उत्तर भारत में है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था।  शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे परन्तु अब समय के साथ लोग बदल गये हैं। परन्तु फिर भी ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।अपने आपमें बहुत बड़ा राज्य है, यहां पर मकर संक्रांति को किचेरी कहा जाता है। इस दिनं प्रयागराज, वाराणसी, आदि स्थानों में पवित्र देवनदियों में स्नान किये जाते हैं। पतंगबाजी भी होती है। इस दिन उड़द की दाल और चावल से खिचड़ी बनाई जाती है और देवताओं को अर्पित की जाती है।

बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।

असम में इसे माघ बिहू के नाम से जाना जाता है। यह तैयार हुई उपज के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। बिहु का दूसरा रूप भोगाली बिहू है जो भोजन के उत्सव है। त्योहार से पहले  अलाव जलाए जाते हैं जिन्हें मेजिस कहा जाता है। इसके बाद होता है सबके साथ असमिया भोजन और सांस्कृतिक प्रदर्शन और मिलना बैठना।

गुजरात में इस त्यौहार को उत्तरायण पर्व कहा जाता है।  बाजार रंग-बिरंगी, आकर्षक पतंगों और मांझे से सज जाते हैं।  साबरमती रिवरफ्रंट पर एक अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव आयोजित किया जाता है।

पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति को बंगाल में पौष संक्रांति कहा जाता है । बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-‘‘सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार। चावल के आटे, नारियल, खजूर गुड़ (गुड़) आदि से बनी पारंपरिक बंगाली मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। एक लोकप्रिय व्यंजन है जिसे पीठा कहते हैंं जो देवताओं को भी चढ़ाया जाता है। प्रतिवर्ष लगने वाला विशाल गंगासागर मेला यहां बेहद लोकप्रिय है।

महाराष्ट्र में मकर संक्रांति 3 दिनों का पर्व है।

दिन 1 (भोगी)-  इसमें भगवान सूर्य की पूजा करना और पतंग उड़ाना शामिल है।

दिन 2 (संक्रांति) – जिस दिन, विवाहित महिलाएं पारंपरिक जातीय परिधान पहनकर एक साथ इकट्ठा होती हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं और एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम खिलाती हैं।

दिन 3 (किंक्रांत)-  लोकप्रिय मराठी कहावत, तिल गुड़ घ्या, गोड गोड बोलाष् महाराष्ट्र से आती है। इसका अनुवाद इस प्रकार है,  तिल और गुड़ के लड्डू खाओ, और मीठा बोलो।् इसका उद्देश्य मतभेदों को दूर करना, शब्दों और कार्यों में मधुरता और सकारात्मकता साझा करना है। 

कर्णाटक की मकर संक्रांति को सुग्गी हब्बा या मकर संक्रांति कहा जाता है । इस दिन पतंगबाजी, रंगोली, सजे-धजे बैलों और गायों आदि के साथ जुलूस भी निकाले जाते हैं।

आंध्र प्रदेश में त्यौहार को 3 दिनों तक मनाया जाता है।

पहला दिन (भोगी पांडुगा) – और सभी पुराने, अप्रयुक्त सामान को जला दिया जाता है।

दिन 2 (पेड्डा पांडुगा) – हमेशा की तरह, नए कपड़े पहनना, प्रार्थना करना, मेहमानों का स्वागत करना,  मीठे व्यंजनों के साथ दावत की व्यवस्था करना आदि।

दिन 3 (कनुमा पांडुगा) – कुछ लोग इस दिन मांस का स्वाद भी लेते हैं।

सबरीमाला में भगवान अयप्पा मंदिर में मकरविलक्कू नामक एक वार्षिक उत्सव होता है । इसे मकर ज्योति के नाम से भी जाना जाता है । यह एक पवित्र तीर्थस्थल है जहां लोग अपने 41 दिन के उपवास करते हैं।

मकर चौला नाम उड़िया से आया है, जो वास्तव में मकर संक्रांति के दिन देवताओं को चढ़ाया जाता है। यह चावल, गुड़, गन्ने के रस, छेना, केला, नारियल आदि से बना एक व्यंजन है। यह व्यंजन इस त्योहार का मुख्य आकर्षण है।

नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भाँति-भाँति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। नेपाल में मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में माघी कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिये जाते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

संक्रांति महोत्सव की भावना गुड़ और तिल से बनी मीठी तैयारियों और उन्हें आसपास के सभी लोगों के साथ साझा करने के तरीके में निहित है। यह अधिक विनम्र और गर्म होकर जीवन में मिठास घोलने का भी एक तरीका है। मौज-मस्ती के उत्सवों से जो एकजुटता आती है, वह भी उल्लेखनीय है।

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