राजभवन शिमला भवन एक अद्भुत विरासत

राजभवन में लोग ऐतिहासिक महत्व और विरासत से हो रहे परिचित
शिमला राजभवन के आम लोगों के लिए खुलने से अब स्थानीय लोगों ही नही अपितु बाहरी राज्यों के लोग भी राजभवन के विरासत और ऐतिहासिक महत्व से परिचित हो रहे हैं। लोग राज्यपाल द्वारा आम लोगों के लिए राजभवन खोलने के फैसले का स्वागत कर रहे हैं। राजभवन सप्ताह के दो आखिरी दिनों शनिवार और रविवार को आम लोगों के देखने के लिए खुला रहता है।

विरासत है अनमोल धरोहर


शिमला का राजभवन 1832 में बनी बार्नस कोर्ट की ऐतिहासिक वह इमारत है जिस ऐतिहासिक भवन का दीदार लोग कर सकेंगे। भारतीय सेना के ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ सर एडवर्ड बार्नस ने साल 1832 में सबसे पहले इसे आवास के रूप में उपयोग में लाया। उन्हीं के नाम पर इस भवन का नाम भी पड़ा। साल 1849 से साल 1864 तक यह विभिन्न ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ का निवास स्थान था। साल 1857 के महान विद्रोह की खबर जनरल एसन को यहीं पर दी गई थी।


इमारत के भूतल पर बने बॉल रूम को पूर्वी मूरिश शैली में आकर्षक ढंग से सजाया और चित्रित किया गया है. इस काम की देखरेख कई साल तक मेयो स्कूल ऑफ आर्ट, लाहौर के प्रिंसिपल लॉकवुड किपलिंग ने की है। साल 1966 तक यह पंजाब के ग्रीष्मकालीन राजभवन के रूप में कार्य करता था।
बार्नस कोर्ट की इसी ऐतिहासिक इमारत में भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौते पर 3 जुलाई, 1972 को यहां हस्ताक्षर किए गए थे। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उस समय की दुर्लभ तस्वीरें और टेबल-कुर्सियां यहां प्रदर्शित की गई हैं।


राजभवन दर्शन को लेकर ये है लोगों के अनुभव


शिक्षा व्यवसाय से जुड़ी आयरन दास ने राजभवन देखने के बाद कहा कि यहां पर एक ओर विलक्षण भवन शैली, सुंदर लॉन, खूबसूरत हॉल है वहीं दूसरी ओर अंग्रेजों के जमाने से लेकर शिमला समझौता और अब तक की ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण है। जो कि लोगों में कौतूहल और ज्ञान के लिए विशेष महत्व की बात है। वहीं स्कूली छात्रा अत्रेयी का कहना था कि ये मौका किताबी जानकारी को इक्कठा करने की अपेक्षा जीवंत अनुभव है। जबकि अन्य शिक्षा व्यवसाय से जुड़े अरिंदम दास इसे राजनीतिक विषयों के लिए जानकारी एकत्र करने का मौका मानते हैं।

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