पांडवों ने सोलन करोल टिब्बे में अज्ञातवास में बनाई थी में गुफा
सोलन की कंडाघाट तहसील में मुख्य बाजार चौक से ऊपर जाते मार्ग में आगे ऊपर की ओर एक रास्ता जाता है। यह रास्ता कंडाघाट के दर्शनीय स्थल के रूप में जाना जाने वाला स्थान है। जिसे पाण्डव गुफा कहा जाता है। यह गुफा करोल टिब्बे पर स्थित है जोकि सोलन का एक दर्शनीय स्थल माना जाता है। कंडाघाट बाजार से ऊपर की ओर लगभग 5 किलोमीटर ऊंचाई पर यह गुफा स्थित है। इसके लिए आपको पैदल चलकर ही अधिकांश सफर तय करना पड़ता है। गुफा तक जाने का रास्ता बेहद संकरा है जो बरसात के समय और भी मुश्किल भरा हो जाता है। गर्मियों और बरसात में अक्सर रास्ते में सांपों का मिलना एक सामान्य बात है।
करोल टिब्बे पर सुंदर ठाकुरद्वारा भी है बेहद दर्शनीय
करोल टिब्बे की ओर चलते समय बीच में एक बहुत ही प्राचीन और दर्शनीय ठाकुरद्वारा भी पड़ता है। यह ठाकुरद्वारा भी बेहद प्राचीन है। यहां पर प्राचीनकाल से ही वैष्णव भक्त पूजा पाठ करते आए हैं जिनका संबंध अयोध्या से माना जाता है। इस परंपरा में आगे अब यहां महंत पूजा पाठ के कार्य को करते हैं। ठाकुरद्वारे में प्राचीन शालिग्राम रखे हैं जिनकी प्रतिदिन विधिवत पूजा होती है। ठाकुरद्वारा के चारों ओर तुलसी के पौधे लगे हुए है साथ ही फूल भी लगाए गए हैं जो वातावरण को सुंदर बनाते हैं। ठाकुरद्वारा के पीछे की ओर ऐतिहासिक पांडव गुफा का रास्ता है। यह गुफा पिंजौर में निकलती है लेकिन अब इसका रास्ता बंद कर दिया गया है। गुफा के भीतर प्रवेश करते ही सैंकड़ों चमगादड़ यात्री की ओर आने की कोशिश करते हैं। इनको पार करके आगे बढ़ना यात्रियों के लिए चुनौतीपूर्ण रहता है।
महाभारत काल से जुड़ती है गुफा की मान्यता
जब पांडव अज्ञातवास में थे तो इस गुफा को खोदकर वे विराट नगरी जोकि आज का पिंजौर है की ओर निकल गए थे। यहां रहने वाले पुजारी बताते हैं कि गुफा पांडवकालीन है और इसकी पवित्रता भंग न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यहां प्रवेश करने से पहले जूतें बाहर उतार कर ही गुफा में प्रवेश कर सकते हैं। गुफा के बाहर पांडवों से जुड़ी कुछ मूर्तियां भी रखी हैं। कंडाघाट गांव में स्थानीय चयनित किए परिवार मंदिर की व्यवस्था में आज भी अपना योगदान देते आ रहे हैं।
करोल टिब्बे का आखिरी पड़ाव है करोल माता मंदिर
करोल की यात्रा का आखिरी पड़ाव करोल में काली माता का मंदिर है जोकि पांडव गुफा से एक से डेढ़ किलोमीटर की चढाई तय करने के बाद आता है। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से चंडीगढ़ तक का स्थान दिखाई देता है। इस स्थान से कुछ नीचे की ओर हनुमान जी की स्थापना भी है जहां पर लोग पूजा अर्चना और रोट लगाकर अपनी मन्नतें मांगते हैं।
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