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ढींगू मंदिर के ऐतिहासिक साक्ष्य है प्राचीन किताबों में ही दर्ज
राजधानी शिमला के संजौली की पहाड़ी में प्रचलित ढींगू मंदिर का इतिहास क्यारकोटी राजवंश की हस्तलिखित पुस्तकों में तो दर्ज है लेकिन जनमानस को इसके बारे में वास्तविक जानकारी नहीं है। मंदिर के इतिहास के बारे में यहां पर पूजा करने वाले पूजारी आचार्य अमित बताते हैं कि संजौली की पहाड़ी पर जिसे आज ढींगू धार कहा जाता है। वहां पर एक पिण्डी रूप में माता का प्राकटय हुआ। क्यारकोटी राजवंश के किसी राणा को स्वपन में माता ने दर्शन दिये और अपने स्थान के बारे में बताया। राणा ने अपने स्तर पर जब इसकी खोज की तो माता की पिंडी मिल गयी। इसके बाद यह क्यारकोटी राजवंश में पूजित होने लगी। यह मंदिर सैंकड़ो वर्ष पुराना रहा है। इसके बारे में स्थानीय उम्रदराज बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पर मंदिर का स्वरूप पहले इतना भव्य नहीं था। यहां पर चारों ओर देवदार के पेड़ होते थे जिससे घिरा यह बड़ा ही पवित्र स्थान रहा है। यहां पर स्थानीय गांवों खासकर क्यारकोटी ठकुराई से जुड़े गांवों के लोग नवरात्रों और अन्य पवित्र अवसरों पर आते रहते हैं। यहां पर आना उनके लिए आज भी परम्परा के समान है। क्यारकोटी राजवंश के राजपुरोहित बताते हैं कि क्यारकोटी और ढींगू मंदिर का इतिहास राजवंश की प्राचीन पुस्तकों में भली प्रकार से दर्ज है, लेकिन आज के दौर में हस्तलिखित पत्रियों को पढ़ना बेहद मुश्किल काम है। ऐसे में मंदिर इतिहास की वास्तविक जानकारी आम लोगों तक आनी काफी मुश्किल है।
कमेटी के अधीन है मंदिर की व्यवस्था
ढींगू माता मंदिर कमेटी मंदिर का संचालन स्थानीय व्यापारिक कमेटी के अधीन है। कमेटी ही मंदिर पुजारी रखने से लेकर मंदिर से जुड़े तमाम कार्यों का निष्पादन करती है। कमेटी में इसके प्राचीन इतिहास के सही साक्ष्यों के बारे में जानकारी और ऐतिहासिक तथ्यों के संकलन में अल्प रूचि हो सकती है। यद्यपि मंदिर की व्यवस्था भली प्रकार से संचालित हो रही है।
मंदिर से नीचे स्थित है बौद्ध धर्मस्थल
संजौली में ढींगू मंदिर धार में अलौकिक आध्यात्मिक उर्जा का संचार है जिस कारण उसी धार में मंदिर परिसर के ठीक नीचे एक बौद्ध धार्मिक स्थल भी है। यहां महात्मा बुद्ध के अनुयायी अपने धर्म के अनुसार अपने धार्मिक कार्य का निष्पादन करते हैं।
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