भारतीय परंपरा में संस्कारों का महत्व
अक्सर ये बात की जाती रही है कि किसी भी देश का सामर्थ्य धन या बल से नहीं आंका जा सकता। बल्कि ये निर्भर करता है संस्कारों और नैतिक उच्च विचारों पर जो वहां के आम नागरिकों के होते हैं। कभी जब अंग्रेज भारत पर हकुमत करने आए और यहां के सीधे सादे लोगों की उच्च वैचारिक बौद्धिक क्षमता और अकूत संपदा को देखा। तो हैरान हो गए। लार्ड मैकाले ने यह माना कि भारत पर हकुमत संभव ही नही है क्योंकि यहां का समाज बहुत ही नैतिक, ज्ञान सम्पन्न, सरल और आर्थिक रूप से सशक्त है। तो उन्होंने माना कि जब तक भारत का शिक्षा तंत्र दूषित नही होगा और ये लोग अंग्रेजी और अंग्रेजियत को ज्ञान की परिभाषा नहीं मानेंगे तब तक ये देश अखंड, अटूट और संपन्न ही रहेगा। आज ये हुआ भी है हमने मैकाले की शिक्षा नीति का अनुकरण किया। आज हमारे देश में अंग्रेजी बोलने और लिखने वाले असली ज्ञानी मान लिए जाते हैं। लेकिन हम समस्या को देखकर उसी पर चिंतन करते जाएं और समाधान की ओर न जाएं तो इससे भी कुछ होगा नहीं। ये सब विचार करके मैने सबसे पहले तो भारतीय परंपरा में संस्कार कुल कितने हैं और उसका मूल रूप क्या है? इसके लिए एक श्रृंखला आरंभ की है। इसके प्रारंभिक अवसर पर आज सबसे पहले 16 संस्कारों के नाम यहां दे रहा हूं। अगली कड़ियों में इसका विस्तार सहित वर्णन भी किया जायेगा।
भारतीय परंपरा में ये 16 संस्कार है –
1 गर्भाधान, 2 पुंसवन, 3 सीमन्तोन्नयन, 4 जातकर्म, 5 नामकरण, 6 निष्क्रमण, 7 अन्नप्राशन, 8 चूड़ाकर्म, 9 विद्यारंभ, 10 कर्णवेध, 11 यज्ञोपवीत, 12 वेदारम्भ, 13 केशान्त, 14 समावर्तन, 15 विवाह तथा 16अन्त्येष्टि
ये उपरोक्त मुख्य संस्कार कहे गए हैं। जबकि कई प्राचीन ग्रंथों में इनकी संख्या 48 और 25 भी मिलती है। आगे के ब्लॉग में हर संस्कार की विषद व्याख्या की जायेगी।
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