हिमाचल के राजपरिवारों और देवपरम्पराओं का संक्षिप्त इतिहास
हिमाचल प्रदेश प्राचीन समय से हिमालय का भाग है सर्वमान्य तथ्य है कि यह क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप में अनेक प्रकार की सभ्यताओं और संस्कृतियों का उद्गम स्थल रहा है। वैदिक और उसके बाद संस्कृत साहित्य में इस क्षेत्र के बारे में सुनियोजित व्यवस्था का वर्णन मिलता है। वैदिक काल हो या पौराणिक काल यह क्षेत्र विविध संस्कृतियों और आध्यात्मिक परम्पराओं का प्रमुख केंद्र रहा है। हिमाचल प्रदेश को प्राचीन काल से ही देवभूमि के नाम से जाना जाता है तथा पश्चिमी हिमालय के ह्रदय में यह बसा हुआ है।आज का शिमला जिला हिल स्टेट की रियासतों से मिलकर बना हुआ है। यह रियासतें सन् 1948 में हिमाचल में मिलाई गयी। यह रियासतें इस प्रकार थी कोटी, भज्जी, बलसन, बुशैहर, धारकोटी, दलेच, धामी, बदी, छंद, जुब्बल, क्योंथल, कुमारसेन, मधान, रतेश, सांगरी, थरोच, बघाट, सारी और ठियोग इत्यादि।
हिमाचल का इतिहास पांडवों से जुडा रहा है शिमला के अनेक स्थानों पर इसके दर्शन होते हैं। सोलन कंडाघाट में निर्मित पांडव गुफा, हाटेश्वरी, हाटकोटी, हनोल महासु, भीमकोट जैसे स्थान आज भी अपनी प्राचीनता का परिचय देते हैं। पौराणिक इतिहास से पता चलता है कि यहां के कुछ भागों मंे दानवों का आधिपत्य रहा है। शिमला के कुछ भागों में भूंडा नरमेध यज्ञ, शांद जैसे दानवी यज्ञों की परम्परा रही है। राक्षसी शक्तियों से बचने के लिए यहां के लोगों ने देवी और देवताओं की पूजा-अर्चना प्रारम्भ की जिसके प्रमाण हमारे सामने मिलते हैं। हिमाचल के मंदिरों का इतिहास बेहद रोचक रहा है इसलिए इसको क्रमबद्ध रूप से लोगों तक पहंुचाने का काम विरासत और हम यह साईट भली-भांति करेगी।
यहां के मंदिरों की परम्परायें यहां के राजाओं से जुड़ी रही हैं। मुख्य रूप से अठारह ठाकुराईयां इस प्रकार से रही हैं-
1 जुब्बल, 2 कोटी, 3 रांवीगढ़, 4 कोटगढ़, 5 खनेटी, 6 कुमारसैन, 7 घून्ड, 8 मधाण, 9 ठियोग, 10 दरकोटी, 11 सारी, 12 रतेश, 13 बलसन, 14 दरकोटी, 15 थरोच, 16 दोड़ी 17 भरोली और 18 देलठ।
बाघलः इस ठकुराई की स्थापना उज्जैन से आए राजा अजयदेव पंवार ने की।
क्योंथलः बंगाल के सेन वंश के आखिरी राजा गिरीसेन ने 13 वी शताब्दी में इस ठकुराई की स्थापना की। इस वंश में 80 राजा हुए हैं।
बघाटः दक्षिण भारत से आये बसन्तपाल पंवार ने इसकी स्थापना की।
कोटी और भज्जीः कांगड़ा के राज्य कुटलेहड़ के दो राजकुमारों चिड़ी ने भज्जी और चंद ने कोटी रियासत की स्थापना की।
महलोगः अयोध्या से आये एक वीरचंद ने की।
धामी: धामी का संस्थापक चौहान वंशीय राजपूत जोकि शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमण के कारण दिल्ली से भागकर आया था ने की।
कुठाड़ः जम्मु के किश्तवाड़ से आए सूरजचंद ने की।
कुनिहारः जम्मु के अखनूर से आये अभोजदेव ने 1154 ने की।
मांगलः मांगल का संस्थापक मारवाड़ से आया शासक था।
बेजाः दिल्ली के तंवर वशीय गर्वचन ने की।
जुब्बलः इन अठारह ठकुराईयों से सबसे महत्वपूर्ण स्थान रहा है जुब्बल रियासत का। 12 वी शताब्दी से पहले यहां के वंशज सिरमौर में राज्य करते थे। वहां का राजा उग्रसेन अपनी रानी अपने बेटों कर्मचंद, दूनीचंद और मूलचंद के साथ हाटकोटी गया था। राजा को किसी काम से अकेले वापिस आना पड़ा। गिरी नदी में बाढ़ आने से सिरमौरी ताल जोकि सिरमौर की राजधानी भी थी बह गयी। राजा की मृत्यु का समाचार समय से उसकी रानी तक नहीं पहुंच पाया। उन्हीं दिनों जैसलमेर से सालवाहन द्वितीय हरिद्वार आया हुआ था। उसे सिरमौर की खाली गद्दी का पता चला। उसने अपने पुत्र को सेना सहित सिरमौर पर अधिकार करने को भेजा। राजा उग्रसेन की बाढ़ में मृत्यु के कारण उसके तीनों बेटों को सिरमौर के राज्य से हाथ धोना पड़ा। इसके बाद उन्होंने कोटी के आसपास के क्षेत्र आपस में बांट लिए। कर्मचंद ने जुब्बल, मूलचंद ने सारी और दूनीचंद ने रांवींगढ़ की नंींव रखी।
बलसनः सिरमौर के प्राचीन राठौर वंश के अलक सिंह ने की।
रतेशः रायसिंह ने इसकी स्थापना की।
कुम्हारसेनः किरत सिंह ने 11 वीं शताब्दी की।
देलठ: देलठ ठकुराई की स्थापना कुम्हारसैन के संस्थापक किरत सिंह के भाई पृथ्वीसिंह ने की।
थरोचः उदयपुर से आये राजकुमार देवकर्ण के वंशज किशन सिंह ने की।
दरकोटीः दरकोटी की स्थापना जयपुर राजपरिवार के सदस्य दुर्गासिंह ने की।
सांगरीः सांगरी का क्षेत्र बुशैहर का भाग था कुल्लु के राजा मानसिंह ने इसे बुशैहर से हथिया लिया।
हिमाचल के देवमंदिरों के पीछे राजपरिवारों की परम्पराएं क्या रही है इस बारे में अनुसंधानपरक लेख आगामी ब्लॉगों मंे आपको मिलते रहेंगे।
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